आओ मन से पुकार करें – रचनाकार विजय मिश्र, लखनऊ.

होली पर विशेष…

– आओ मन से पुकार करें –
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आज होली है,
होली पिछले साल भी आई थी,
उससे पिछले साल भी आई थी,
लोगों ने होलिका जलाई थी.
कुछ लोगों ने संकल्प लिया –
होलिका दहन के साथ आपस के द्वेष और सभी प्रकार की नकारात्मकता दहन करता हूं .
लोग गले मिले.
समय बीता.
काल खंड की नई होली आई .
हम रोज सोचते हैं कि…
हम कुछ ऐसा करेंगे …
कुछ वैसा करेंगे ….
कई बार मन का हो जाता है..
बहुत बार मन का नहीं होता है…
क्योंकि तुम्हारे मन का होना
ब्रह्मांड के होने से तालमेल
नहीं खा रहा है ..
जीवन एक तालमेल का नाम है .
जीवन एक संयोजन है .
जीवन एक संगम है .
जीवन एक संतुलन है .
अक्सर जब हमारे मन का नहीं होता
तब हम संतुलन खो देते हैं,
फिर असंतुलन की स्थिति आ जाती है,
जो कि हमारी विवेकशीलता को हराकर हमें और असंतुलन की ओर ले जाती है,
फिर चाहे जैसी भी होलिका आए नकारात्मकता का दहन नहीं होता ,
क्योंकि सच का जब समय से
वहन नहीं होता,
तब तक हमारे दुर्गुणों का
दहन नहीं होता.
किसी भी नियम को याद करने ,
अपनाने से पहले विवेकशील व्यक्ति को यह जान- समझ लेना चाहिए
कि जब तक दुर्गुणों का दहन नहीं होता तब तक नारायण को ,
ब्रह्मांड को आपके विचार, क्रिया और कदम सहन नहीं होता.
चक्रधारी को कपट और छलावा सहन नहीं होता.
अनंत बार अनंत ब्रह्मांड ,
अनंत चक्रधारी ने खंड- खंड नष्ट किया है,
फिर प्रस्फुटित किया है ..
फिर -फिर , खंड -खंड नष्ट किया है.
आओ एक संकल्प लें…
कि हम कर्म को कर्म की तरह लेंगे .
कर्म को परिणाम की तरह नहीं लेंगे.
यह मन में बिठाना होगा कि हमें धीरे-धीरे क्रोध का, अहंकार का,
और अनावश्यक महत्वाकांक्षा का, तत्काल प्रभाव से त्याग करना होगा,
यह सच है कि –
विचार ही हमें उठाते और गिराते हैं.
अतः विचारों पर काम करना होगा.
ब्रह्मांड नियंता के विरुद्ध चलकर किसी को कुछ प्राप्त नहीं होता.
और व्यक्ति अपनी बौद्धिक छलावा का शिकार हो जाता है,
विकार की उत्पत्ति होती है ,
और व्यक्ति का अस्तित्व बेकार हो जाता है .
होलिका दहन के अवसर पर,
आओ हम सब दृढ़ संकल्प के साथ
श्री हरि के शरण हो जाएं .
ऐसा करते ही हम ब्रह्मांड के नियमों के संतुलन में हो जाएंगे ..
जगत -जीवन प्रसन्नऔर सुखी होगा.
आओ अहम का त्याग कर
प्रसन्नता का वर्णन करें .
आओ नकारात्मकता का दहन करें .
शांति का वरण करें .
क्रोध का क्षरण करें .
आओ श्री हरि की कृपा का विचार करें.
आओ हे जन- गण ,मन से पुकार करें…

रचनाकार : विजय मिश्र,
लखनऊ.
संपर्क- 9621115027