क्षितिज मिश्रा की खास रिपोर्ट .
पुलिस और जनता के बीच संबंध
पुलिस विभाग का संगठन समाज में होने वाले अपराधों की जांच और रोकथाम और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए किया गया है। अर्थात न्याय व्यवस्था में पुलिस वह प्रथम पायदान है जो किसी घटना को जानता है और उस घटना के पक्ष और विपक्ष,आरोप और प्रत्यारोप का विश्लेषण बिना पक्षपात किये न्याय करता हुआ अपराध करने वाले के विरुद्ध उचित वैधानिक कार्यवाही करता है।इस कार्य के लिए, पुलिस को बिना किसी पक्ष में रहने के लिए, उसका तटस्थ और निष्पक्ष होना अत्यंत आवश्यक होता है ।इस कारण शुरू से ही समाज और पुलिस के मध्य एक दूरी रहा है ताकि समाज पुलिस को अपने हथियार की तरह उपयोग न कर सके।
क्षितिज मिश्रा की खास चर्चा…….सुनिता नाग बंजारे निरिक्षक थाना प्रभारी, थाना बम्हनीडीह, जिला जांजगीर चांपा. से।
पुलिस के निष्पक्ष होने के प्रयास के कारण समाज ने पुलिस की छबी को असामाजिक और असंवेदनशील मानना प्रारंभ कर दिया और शनै शनै पुलिस और समाज के मध्य की खाई बढ़ती चली गई।
समयांतराल में समाज में आधुनिकता का संक्रमण,कानूनी ज्ञान की कमी,अपराधो का अप्रत्याशित वृद्धि, पुलिस की छबी में सुधार लाने के प्रयास ऐसे कुछ कारण थे जिसके कारण पुलिस में समाज को निकट लाने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। और फिर कम्युनिटी पुलिसिंग के माध्यम से पुलिस जनता को विभिन्न कानूनों के प्रति जागरूक करने का प्रयास कर पुलिस और समाज के बीच के खाई को पाटने का प्रयास करने लगी।साथ ही वरिष्ठ से वरिष्ठतम अधिकारी द्वारा भी आम नागरिकों से मिलने और समस्याओं को जानने का प्रयास कर उनका निराकरण करने का प्रयास किया जाने लगा ताकि आम जनता पुलिस को निकट पा कर सहज महसूस करने लगे।
इस प्रयास से कालांतर में समाज के बीच पुलिस की छबी में तो कोई खास फर्क नहीं पड़ा किन्तु इससे आम जनता में पुलिस का भय जाता रहा और अब लोग पुलिस को अपने अनुसार कार्य करने हेतु विवश करना प्रारंभ कर दिए जिससे कहीं न कहीं प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से हानि आम जनता को ही होने लगा है क्योंकि अब अच्छे व्यवहार बनाने हेतु पक्षपात भी होने लगी नतीजा न्याय के प्रथम चरण में ही पक्षपात होना प्रारम्भ हो गया। साथ ही समाज के सशक्त नागरिक पुलिस पर प्रयक्ष अप्रत्यक्ष रूप से दबाव डाल कर स्वतंत्रता से कार्य करने में व्यवधान पैदा करने लगे। नतीजा पुलिस का स्वतंत्र निष्पक्ष रहना दिन प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है।
वर्तमान समय में जब पारदर्शी, संवेदनशील सुशासन की परिकल्पना की जा रही है ऐसे में पुलिस को पारदर्शी पूर्वक, संवेदनशील हो कर कार्य करने की आवश्यकता है किन्तु अपने व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को भूल कर एक सशक्त निष्पक्ष अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं देनी चाहिए तथा किसी से भी व्यक्तिगत संबंध बनाने से बचना चाहिए तभी वह निष्पक्ष और वास्तविक न्याय करने में सक्षम और सफल हो सकेगा।एक पुलिस अधिकारी को प्राथी,याचको के साथ संवेदनशील और अपराध करने वालों के साथ मनोवैज्ञानिक ढंग से व्यवहार करना चाहिए। तभी न्याय का यह प्रथम पायदान सफल और सशक्त रह सकता है।
पुलिस और जनता के बीच संबंध
पुलिस विभाग का संगठन समाज में होने वाले अपराधों की जांच और रोकथाम और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए किया गया है। अर्थात न्याय व्यवस्था में पुलिस वह प्रथम पायदान है जो किसी घटना को जानता है और उस घटना के पक्ष और विपक्ष,आरोप और प्रत्यारोप का विश्लेषण बिना पक्षपात किये न्याय करता हुआ अपराध करने वाले के विरुद्ध उचित वैधानिक कार्यवाही करता है।इस कार्य के लिए, पुलिस को बिना किसी पक्ष में रहने के लिए, उसका तटस्थ और निष्पक्ष होना अत्यंत आवश्यक होता है ।इस कारण शुरू से ही समाज और पुलिस के मध्य एक दूरी रहा है ताकि समाज पुलिस को अपने हथियार की तरह उपयोग न कर सके।
पुलिस के निष्पक्ष होने के प्रयास के कारण समाज ने पुलिस की छबी को असामाजिक और असंवेदनशील मानना प्रारंभ कर दिया और शनै शनै पुलिस और समाज के मध्य की खाई बढ़ती चली गई।
समयांतराल में समाज में आधुनिकता का संक्रमण,कानूनी ज्ञान की कमी,अपराधो का अप्रत्याशित वृद्धि, पुलिस की छबी में सुधार लाने के प्रयास ऐसे कुछ कारण थे जिसके कारण पुलिस में समाज को निकट लाने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। और फिर कम्युनिटी पुलिसिंग के माध्यम से पुलिस जनता को विभिन्न कानूनों के प्रति जागरूक करने का प्रयास कर पुलिस और समाज के बीच के खाई को पाटने का प्रयास करने लगी।साथ ही वरिष्ठ से वरिष्ठतम अधिकारी द्वारा भी आम नागरिकों से मिलने और समस्याओं को जानने का प्रयास कर उनका निराकरण करने का प्रयास किया जाने लगा ताकि आम जनता पुलिस को निकट पा कर सहज महसूस करने लगे।
इस प्रयास से कालांतर में समाज के बीच पुलिस की छबी में तो कोई खास फर्क नहीं पड़ा किन्तु इससे आम जनता में पुलिस का भय जाता रहा और अब लोग पुलिस को अपने अनुसार कार्य करने हेतु विवश करना प्रारंभ कर दिए जिससे कहीं न कहीं प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से हानि आम जनता को ही होने लगा है क्योंकि अब अच्छे व्यवहार बनाने हेतु पक्षपात भी होने लगी नतीजा न्याय के प्रथम चरण में ही पक्षपात होना प्रारम्भ हो गया। साथ ही समाज के सशक्त नागरिक पुलिस पर प्रयक्ष अप्रत्यक्ष रूप से दबाव डाल कर स्वतंत्रता से कार्य करने में व्यवधान पैदा करने लगे। नतीजा पुलिस का स्वतंत्र निष्पक्ष रहना दिन प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है।
वर्तमान समय में जब पारदर्शी, संवेदनशील सुशासन की परिकल्पना की जा रही है ऐसे में पुलिस को पारदर्शी पूर्वक, संवेदनशील हो कर कार्य करने की आवश्यकता है किन्तु अपने व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को भूल कर एक सशक्त निष्पक्ष अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं देनी चाहिए तथा किसी से भी व्यक्तिगत संबंध बनाने से बचना चाहिए तभी वह निष्पक्ष और वास्तविक न्याय करने में सक्षम और सफल हो सकेगा।एक पुलिस अधिकारी को प्राथी,याचको के साथ संवेदनशील और अपराध करने वालों के साथ मनोवैज्ञानिक ढंग से व्यवहार करना चाहिए। तभी न्याय का यह प्रथम पायदान सफल और सशक्त रह सकता है।