आलोक मिश्रा
शारदीय नवरात्रि विशेष 🚩
सभी की मनोकामना पूर्ण करने तथा सभी के कष्ट का हरण करने के लिए मां भगवती के शुभ शारदीय नवरात्र 7 अक्टूबर 2021 गुरुवार से प्रारंभ हो रहे हैं
आश्विन की नवरात्रा शारदीय नवरात्र कहलाता है। सूर्य के दक्षिणायन काल में देवी पूजन को विशेष महत्व दिया गया है। इसलिए अश्विन की नवरात्र में विशेष रूप से देवी पूजन की परंपरा है। प्रतिपदा से नवमी तक देवी के नौ रूपों का पूजन होता है। शास्त्रत्तें में चैत, आषाढ़, आश्विन एवं माघ महीने के शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक चार नवरात्र का विधान बताया गया है। आषाढ़ एवं माघ मास में होने वाले गुप्त नवरात्र का तंत्र साधना में विशेष महत्व है। चैत में बासन्ती नवरात्र का और अश्विन में शारदीय नवरात्र का आयोजन होता है।
6 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ ही पितृ पक्ष का समापन के ठीक अगले दिन यानि 7 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो जाएंगी। देवी मां के नौ रूपों के नौ दिनों को नवरात्रि के रूप में जाना जाता है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को मातामह श्राद्ध निकालने का भी विधान होता है इस दिन शास्त्रों के अनुसार दोहिता के द्वारा नाना नानी के निमित्त श्राद्ध कर्म करना चाहिए विशेषकर जिस दोहिता के द्वारा नाना नानी की संपत्ति प्रयोग की जाती है उनको तो अवश्य ही करना चाहिए l
ऐसे में जहां इस साल यानि 2021 के पितृ पक्ष के दौरान एक दिन की वृद्धि (पितृ पक्ष में 27 सितंबर का दिन ऐसा रहा जिस दिन कोई श्राद्ध तिथि नहीं थी) हो गई, वहीं नवरात्रि में इस बार नवरात्र नौ की बजाय आठ ही दिनों के ही होंगे। इसका कारण यह है कि इस बार तृतीयऔर चतुर्थी तिथि एक साथ पड़ रही हैं। ऐसे में 7 अक्टूबर से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्र 14 अक्टूबर तक रहेंगे।
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को घट स्थापना के साथ ही माता रानी का पूजन प्रारंभ होता है देवी की पूजा में पूजन का पूर्ण फल प्राप्ति के लिए कुछ सावधानियां अवश्य रखनी चाहिए घटस्थापना विधि विधान से सावधानीपूर्वक करनी चाहिए इसमें तांबा पीतल चांदी या मिट्टी का कलश लेकर उसे जल से धोकर शुद्ध कर लेवे उसके पश्चात मोली बांधकर शुद्ध जल तथा गंगाजल से भरें और इसमें इत्र सुपारी सिक्का तथा तीर्थ जल डालें अशोक के पत्ते लगाकर कलश पर लाल चुनरी में लपेटकर नारियल को स्थापित करें तथा कलश को विष्णु स्वरूप में पूजा जाता है अतः विष्णु भगवान का आह्वान करें साथ ही वरुण देवता का भी आह्वान और पूजन अवश्य करें शास्त्र अनुसार माता भगवती की आराधना के साथ की नवरात्रि में 9 दिनों तक अपनी कुल परंपरा के अनुसार हनुमानजी तथा भेरू जी की पूजा का भी विधान होता है यह पूजन प्रत्येक व्यक्ति अपने कुल तथा समाज की परंपरा के अनुसार करें
नवरात्रि में अखंड दीपक का भी विशेष महत्व होता है 9 दिनों तक अखंड ज्योत जलाने से माता जी प्रसन्न होती है और साथ में जवारा भी बोए जाते हैं जिनको पूर्णाहुति के दिन विशेष पूजन करके माता को समर्पित किया जाता है साथ ही नवरात्रि में दुर्गा चालीसा का पाठ तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ अनेक प्रकार के देवी स्तोत्र का पाठ आरती आदि नियमित यथा संभव हो करने चाहिए l
नवरात्र के शुभ समय में ग्रंथों के अनुसार सभी प्रकार की खरीदारी सहित सभी शुभ कार्यों के लिए विशेष शुभ माने जाते हैं, लेकिन इस बार ग्रह, नक्षत्रों के मेल से बन रहे कई शुभ संयोग इसे और अधिक शुभता प्रदान करते दिख रहे हैं। इस बार नवरात्रि में आठ नौ दस ग्यारह बारह चौदह अक्टूबर को रवि योग बन रहा है साथ ही अमृत योग का निर्माण 7 10 12 अक्टूबर को हो रहा है l
वहीं इस बार दशहरा पर्व 15 अक्टूबर को मनाया जाएगा। नवरात्र में6दिनों तक रवि योग का संयोग रहेगा। शुभ कार्यों के लिए यह योग काफी शुभ माना गया है।
इस बार नवरात्र कई शुभ संयोगों से युक्त होंगे। नवरात्र के नौ दिन तो वैसे ही काफी शुभ माने गए हैं, लेकिन शारदीय नवरात्र 2021 में कई शुभ योग आने से इसका महत्व और बढ़ जाएगा। शारदेय नवरात्र की शुरुआत अमृत योग में होगी।
शुभ कार्यों के लिए विशेष फलदायी होते हैं नवरात्रि
नवरात्र सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए विशेष शुभ होता है। इस बार नवरात्र की शुरुआत चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग में होगी, इसलिए घट स्थापना अभिजीत मुहूर्त में करना श्रेष्ठ रहेगा।
सूर्य उदय समय तथा दिनमान की गणना के अनुसार अभिजीत नामक मुहूर्त दोपहर 12:01 से 12:49 तक रहेगा साथ ही घटस्थापना के लिए द्विस्वभाव लग्न को शुभ माना जाता है जो की धनु नामक द्विस्वभाव लग्न दोपहर 12:01 से 1:51 तक रहेगा
चित्रा नक्षत्र तथावैधृति योग के कारण इस दिन घट स्थापना का यही मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ रहेगा
नवरात्र में भवन, भूमि, वाहन, आभूषण, वस्त्र, रत्न सहित सभी प्रकार की खरीदारी करना शुभता प्रदान करता है। इसी प्रकार नवीन कार्यों की शुरुआत करना भी इसमें श्रेष्ठ होता है। इस बार तृतीया और चतुर्थी और एक साथ होने से कुष्मांडा माता और स्कंदमाता की आराधना एक साथ होगी।
पालकी अर्थात डोली में सवार होकर आएंगी माता रानी
देवी भागवत पुराण के अनुसार इस बार माता रानी का आगमन डोली में होगा। इस लिहाज से महिलाओं का वर्चस्व बढ़ेगा और मान सम्मान में वृद्धि होगी,
लेकिन महामारी से लोग परेशान रहेंगे।
नवरात्र में नौ देवियों की आराधना का विधान है। कई बार तिथि भेद के कारण एक ही दिन दो-दो तिथियां आती है, ऐसे में अनेक बार आठ दिन के नवरात्र की स्थिति भी बनती है।
इस वर्ष नवरात्रि चित्रा नक्षत्र व वैघृति योग में शुरू हो रही है जो देश की अर्थव्यवस्था के लिहाज से शुभ नहीं है। देश की अर्थव्यवस्था कमजोर बनी रहेगी। छत्र भंग योग राजनीतिक उठापटक, प्राकृ एक्सतिक आपदा, नई नई असाध्य बीमारियों व महामारी का भय आदि। इस वर्ष नवरात्रि आठ दिनों की होगी तृतीया व चतुर्थी दोनों एक ही दिन 9 अक्टूबर, शनिवार को प्रातः 7.48 बजे तक तृतीया है बाद में चतुर्थी प्रारम्भ होगी जो कि रविवार को सूर्य उदय से पहले 4:55 पर समाप्त हो जाएगी l
15 अक्टूबर को अपरान्ह में दशमी है अतः दशहरा शमी पूजन शुक्रवार को मनाया जाएगा। चित्रा नक्षत्र व वैधृति योग के चलते घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त में ही शुभ रहेगी। अतः शुभ मुहूर्त में ही अपनी कुल परम्परानुसार घटस्थापना करें।
शारदीय नवरात्रि 2021 तिथियां-
7 अक्टूबर- मां शैलपुत्री की पूजा
8 अक्टूबर- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
9 अक्टूबर- मां चंद्रघंटा व मां कुष्मांडा की पूजा
10 अक्टूबर- मां स्कंदमाता की पूजा
11 अक्टूबर- मां कात्यायनी की पूजा
12 अक्टूबर- मां कालरात्रि की पूजा
13 अक्टूबर- मां महागौरी की पूजा
14 अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री की पूजा
सूर्य उदय समय के अनुसार शारदीय नवरात्रि इस वर्ष आठ दिनों की है। नवरात्रि की तिथियों का घटना व श्राद्ध की तिथियों का बढ़ना अशुभ है। यह अच्छा संकेत नही हैं। शारदीय नवरात्रि में मां की साधना, उपासना व विविध कामना पूर्ति हेतु नव कन्याओं को नवदुर्गा के स्वरूप में तिथि, वार व नक्षत्र अनुसार नैवेद्य अर्पण करने से वांछित फल की प्राप्ति के साथ माँ की कृपा बनी रहती है।
नवरात्रि में 07 अक्टूबर, गुरुवार, प्रतिपदा तिथि व चित्रा नक्षत्र:- विवाह योग्य कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति हेतु माँ शैलपुत्री के रूप में दो वर्ष की कन्या का गाय के घी से निर्मित हलवा व मालपूए का भोग लगाए।
8 अक्टूबर,शुक्रवार, द्वितीया तिथि स्वाति नक्षत्र:-विजय प्राप्ति व सर्वकार्य सिद्धि हेतु तीन वर्ष की कन्या का माँ ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजा कर मिश्री व शक्कर ने बने पदार्थ का भोग लगाए।
9 अक्टूबर तृतीया व चतुर्थी तिथि शनिवार विशाखा /अनुराधा नक्षत्र:- दुःखों के नाश व सांसारिक कष्टों से मुक्ति हेतु चार व पांच वर्ष की कन्या का माँ चंद्रघंटा /कुष्मांडा के रूप में पूजन कर दूध से निर्मित पदार्थो का व मालपुए का भोग अर्पित करें।
10 अक्टूबर रविवार पंचमी तिथि व अनुराधा नक्षत्र:–विद्यार्थियों को परीक्षा में सफलता व मनोकामना पूर्ति हेतु छः वर्ष की कन्या का माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूजन कर माखन का भोग लगाएं।
11 अक्टूबर सोमवार षष्ठी तिथि व ज्येष्ठा नक्षत्र:-चारों पुरुषार्थ व रूप लावण्य की प्राप्ति हेतु सात वर्ष की कन्या का माँ कात्यायनी के स्वरूप में पूजन कर मिश्री व शहद का भोग समर्पित करें।
12 अक्टूबर मंगलवार, सप्तमी तिथि व मूल नक्षत्र:–नवग्रह जनित बाधाएं व शत्रुओं के नाश हेतु आठ वर्ष की कन्या का माँ कालरात्रि का के स्वरूप में पूजा अर्चना कर दाख,गुड़ व शक्कर का नैवेद्य अर्पित करें।
13 अक्टूबर बुधवार अष्टमी तिथि व पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र:-विभिन्न संतापों से मुक्ति व मनोकामना पूर्ति हेतु नौ वर्ष की कन्या का महागौरी स्वरूप में पूजन कर गाय के घी से निर्मित पदार्थ व श्रीफल का भोग लगाए।
14 अक्टूबर गुरुवार, नवमी तिथि व उत्तराषाढ़ा नक्षत्र :-परिवार में सुख समृद्धि, भय नाश व मनोकामना पूर्ति हेतु दस वर्ष की कन्या का माँ सिद्धि दात्री व नवदुर्गा स्वरूप में पूजनकर खीर,हलवा व सूखे मेवे का भोग लगाये। उपर्युक्त विधि विधान से नवरात्रि में दो से 10 वर्ष की कन्याओं का माँ नवदुर्गा स्वरूप में पूजन अर्चन कर वांछित नैवेद्य समर्पण से देवीभक्तों की सभी वांछित मनोकामना शीघ्र प्राप्त होती है व भगवती की कृपा सदैव बनी रहती है।
अष्टमी व नवमी को कुलदेवी पूजन का भी विधान है। नवरात्रि में स्नान, घट स्थापना, ज्वारे का रोपण, प्रतिमा पूजा, चंडी पाठ, उपवास व हवन पूजन का ही विशेष महत्व है। सभी क्रियाएं शुद्धता, पवित्रता के श्रद्धा भक्ति पूर्वक सविधि किये जाने से ही वांछित फल की प्राप्ति सम्भव है। महामारी व उसके भय के चलते माँ की श्रद्धा व भाव से आराधना करने से आप शीघ्र ही भयमुक्त हो सकते है।
या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता,नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
स्वामी राजेश्वरानंद जी महाराज सुरेश्वर महादेव पीठ खम्हारडीह रायपुर के अनुसार