रायपुर /आलोक मिश्रा
स्वामी राजेश्वरानंद श्री सुरेश्वर महादेव पीठ संस्थापक के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के नौंवे दिन आंवला नवमी पर्व मनाया जाता है. आंवला नवमी को अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू धर्म में आंवला नवमी का भी विशेष महत्व है. कार्तिक मास में कब और क्यों मनाई जाती है आंवला नवमी, जानें पूजा विधि और व्रत कथा
आंवला नवमी 2021
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के नौंवे दिन आंवला नवमी पर्व मनाया जाता है. आंवला नवमी को अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू धर्म में आंवला नवमी का भी विशेष महत्व है. इस बार आंवला नवमी 12 नवंबर, शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी. इस दिन दान-धर्म का भी खास महत्व है. मान्यता है कि इस दिन दान आदि करने से पुण्य का फल इस जन्म में तो मिलता ही है, साथ ही अगले जन्म में भी मिलता है. ग्रंथों में बताया गया है कि इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है.
बता दें कि इस दिन आवंला के वृक्ष की पूजा करते हुए स्वस्थ रहने की कामना की जाती है. इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा आदि करने के बाद वृक्ष के नीचे बैठकर ही भोजन किया जाता है. इस प्रसाद के रूप में आवंला खाया जाता है. आइए जानते हैं क्यों मनाई जाती है आंवला नवमी और उसकी पूजन विधि.
इसलिए मनाई जाती है आंवला नवमी
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन आंवला नवमी मनाई जाती है. इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है. कहा जाता है कि इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ होता है. द्वापर युग में भगवान विष्णु के आंठवे अवतार श्री कृष्ण ने जन्म लिया था. इसी दिन श्री कृष्ण ने वृंदावन गोकुल की गलियों को छोड़कर मथुरा की ओर प्रस्थान किया था. इसी वजह से आज के दिन वृंदावन परिक्रमा की जाती है.
आंवला नवमी पूजा विधि
आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है. हल्दी कुमकम आदि से पूजा करने के बाद उसमें जल और कच्चा दूध अर्पित किया जाता है. इसके बाद आंवले के पेड़ की परिक्रमा करें और तने में कच्चा सूत या मौली आठ बार लपेटी जाती है. पूजा करने के बाद कथा पढ़ी और सुनी जाती है. इस दिन पूजा समापन के बाद परिवार और मित्रों के साथ पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने का महत्व है.
आंवला नवमी कथा
आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराना लाभदायक माना जाता है. पहले ब्राह्मणों को सोना दान में दिया जाता था. एक बार एक सेठ आंवला नवमी के दिन ब्राह्माणों को आदर सतकार देता था. ये सब देखकर सेठ के पुत्रों को अच्छा नहीं लगता था. और इसी बात पर वे पिता से झगड़ा भी किया करते थे. घर के लड़ाई-झगड़ों से परेशान होकर सेठ ने घर छोड़ दिया और दूसरे गांव में रहने लगा. जीवनयापन के लिए सेठ ने एक दुकान लगा ली और दुकान के आगे आंवले का एक पेड़ लगाया. भगवान की कृपा से उसकी दुकान खूब चलने लगी.
परिवार से दूर होने के बावजूद वे यहां भी आंवला नवमी का व्रत और पूजा आदि करने लगा था. ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उन्हें दान दिया करता. वहीं, दूसरी तरफ पुत्रों का व्यापार पूरी तरह से ठप्प होता चला गया और उनको अपनी गलती का अहसास हुआ. ऐसा देख उन्हें ये बात समझ आ गई कि वे पिता के भाग्य से ही खाते थे. और फिर पुत्र अपने पिता के पास जाकर माफी मांगी. पिता की आज्ञानुार उन्होंने भी आंवला के वृक्ष की पूजा की और इसके प्रभाव से घर में पहले जैसी खुशहाली आ गई.
स्वामी राजेश्वरानंद संस्थापक श्री सुरेश्वर महादेव पीठ एवं संत महासभा प्रदेश अध्यक्ष