नेशनल डेस्क | 71वां संविधान दिवस के मौके पर पीएम मोदी संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में शामिल हुए। इस कार्यक्रम के दौरान पीएम ने कहा, “आज का दिन अंबेडकर, राजेंद्र प्रसाद जैसे दूरंदेशी महानुभावों को नमन करने का है। आज का दिन इस सदन को प्रणाम करने का है। आज 26/11 का भी दिन है। वो दुखद दिन, जब देश के दुश्मनों ने देश के भीतर आकर मुंबई में ऐसी आतंकवादी घटना को अंजाम दिया। भारत के संविधान में सूचित देश के सामान्य आदमी की रक्षा की जिम्मेदारी के तहत अनेक हमारे वीर जवानों ने उन आतंकवादियों से लोहा लेते-लेते अपने आपको समर्पित कर सर्वोच्च बलिदान किया। मैं आज उन सभी बलिदानियों को नमन करता हूं।’
मोदी ने आगे कहा, ‘कभी हम सोचें कि हमें संविधान बनाने की जरूरत होती तो क्या होता। आजादी की लड़ाई, विभाजन की विभीषिका के बावजूद देशहित सबसे बड़ा है, हर एक के हृदय में यही मंत्र था संविधान बनाते वक्त। विविधिताओं से भरा देश, अनेक बोलियां, पंथ और राजे-रजवाड़े, इन सबके बावजूद संविधान के माध्यम से देश को एक बंधन में बांधकर देश को आगे बढ़ाना। आज के संदर्भ में देखें तो संविधान का एक पेज भी शायद हम पूरा कर पाते। क्योंकि, समय ने नेशन फर्स्ट पर राजनीति ने इतना प्रभाव पैदा कर दिया है कि देश हित पीछे छूट जाता है।’
PM ने कहा, ‘साथियों, हमारा संविधान सिर्फ अनेक धाराओं का संग्रह नहीं है। संविधान सहस्त्रों सालों की भारत की महान परंपरा, अखंड धारा की आधुनिक अभिव्यक्ति है। हमारे लिए लेटर एंड स्प्रिट में संविधान के प्रति समपर्पण है। जब हम संवैधानिक व्यवस्था से जनप्रतिनिधि के रूप में ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक दायित्व निभाते हैं, तो इसी भावना को याद रखना होगा। ऐसा करते वक्त संविधान की भावनाओं को कहां चोट पहुंच रही है, इसे भी नजरंदाज नहीं कर सकते हैं। इस संविधान दिवस को इसलिए भी मनाना चाहिए कि जो कुछ भी कर रहे हैं, वो संविधान के लिहाज से सही है या गलत। रास्ता सही है या गलत। हमें अपना मूल्यांकन करना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘अच्छा होता देश आजाद होने के बाद 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की परंपरा शुरू करनी चाहिए थी। इसकी वजह से हमारी पीढ़ियां जानती कि संविधान बना कैसे, किसने बनाया, क्यों बनाया, ये कहां ले जाता है, कैसे ले जाता इसी चर्चा होती हर साल। इसे हमने समाजिक दस्तावेज और जीवंत इकाई माना है। विविधता भरे देश में ये ताकत के रूप में अवसर के रूप में काम आता। कुछ लोग इससे चूक गए। अंबेडकर की 125वीं जयंती पर हमें लगा कि इससे बड़ा पवित्र अवसर क्या हो सकता है कि अंबेडकर ने जो पवित्र नजराना दिया है, उसे हम याद करते रहें।’
मोदी ने कहा, ‘2015 में जब इसी सदन में मैं बोल रहा था, उस दिन भी विरोध हुआ था कि 26 नवंबर कहां से लाए, क्यों कर रहे हो, क्या जरूरत थी। भारत संवैधानिक लोकतांत्रिक परंपरा है। राजनीतिक दलों का अपना अहम महत्व है। राजनीतिक दल भी हमारी संविधान की भावनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का माध्यम हैं। संविधान की भावना को भी चोट पहुंची है। संविधान की एक-एक धारा को भी चोट पहुंची है।’