रायपुर / आलोक मिश्रा
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*छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व*
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छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है। यही एक मात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें सूर्य देव का पूजन कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। वे ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है। वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा जाता है। सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है। सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है। छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है इस पर्व की सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम।
*खगोलीय और ज्योतिषीय दृष्टि से छठ पर्व का महत्व*
वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी छठ पर्व का बड़ा महत्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर, जिस समय सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित रहता है। इस दौरान सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती है। इन हानिकारक किरणों का सीधा असर लोगों की आंख, पेट व त्वचा पर पड़ता है। छठ पर्व पर सूर्य देव की उपासना व अर्घ्य देने से पराबैंगनी किरणें मनुष्य को हानि न पहुंचाए, इस वजह से सूर्य पूजा का महत्व बढ़ जाता है।
छठ पूजा की सामग्री , पूजा विधि और मुहूर्त यहां जानिए
मान्यता है कि छठी मैया संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है।
मान्यता है छठ पूजा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती हैं। खासकर इस व्रत को संतानों के लिए रखा जाता है।
छठ पर्व हर साल कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। ये तिथि इस बार 10 नवंबर को पड़ रही है। मुख्य रूप से इस पर्व को बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। इस पर्व में 36 घंटे निर्जला व्रत रख सूर्य देव और छठी मैया की पूजा और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। मान्यता है छठ पूजा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती हैं। खासकर इस व्रत को संतानों के लिए रखा जाता है। कहते हैं जो लोग संतान सुख से वंचित हैं उनके लिए ये व्रत वरदान साबित होता है। जानिए छठ पर्व की पूजा विधि, सामग्री, प्रसाद, कथा और आरती।
छठ पूजा: संध्या अर्घ्य और प्रात:काल के अर्घ्य का समय
10 नवंबर (संध्या अर्घ्य) सूर्यास्त का समय : 05:30 PM
11 नवंबर (प्रात:काल अर्घ्य) सूर्योदय का समय : 05:29 AM
छठ पूजा सामग्री: नए वस्त्र, बांस की दो बड़ी टोकरी या सूप, थाली, पत्ते लगे गन्ने, बांस या फिर पीतल के सूप, दूध, जल, गिलास, चावल, सिंदूर, दीपक, धूप, लोटा, पानी वाला नारियल, अदरक का हरा पौधा, नाशपाती, शकरकंदी, हल्दी, मूली, मीठा नींबू, शरीफा, केला, कुमकुम, चंदन, सुथनी, पान, सुपारी, शहद, अगरबत्ती, धूप बत्ती, कपूर, मिठाई, गुड़, चावल का आटा, गेहूं।
*छठ पूजा विधि:-*
-छठ पर्व के दिन प्रात:काल स्नानादि के बाद संकल्प लिया जाता है। संकल्प लेते समय इस मन्त्र का उच्चारण किया जाता है-:
ॐ अद्य अमुक गोत्रो अमुक नामाहं मम सर्व पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।
-पूरे दिन निराहार और निर्जला व्रत रखा जाता है। फिर शाम के समय नदी या तालाब में जाकर स्नान किया जाता है और सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है।
-अर्घ्य देने के लिए बांस की तीन बड़ी टोकरी या बांस या पीतल के तीन सूप लें। इनमें चावल, दीपक, लाल सिंदूर, गन्ना, हल्दी, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी रखें। साथ में थाली, दूध और गिलास ले लें। फलों में नाशपाती, शहद, पान, बड़ा नींबू, सुपारी, कैराव, कपूर, मिठाई और चंदन रखें। इसमें ठेकुआ, मालपुआ, खीर, सूजी का हलवा, पूरी, चावल से बने लड्डू भी रखें। सभी सामग्रियां टोकरी में सजा लें। सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में एक दीपक भी जला लें। इसके बाद नदी में उतर कर सूर्य देव को अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय इस मंत्र का उच्चारण करें।
ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भवत्या गृहाणार्ध्यं दिवाकर: ॥
*छठ पूजा का महत्व:-*
इस पर्व में सूर्य देव की पूजा की जाती है उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य देव के साथ-साथ छठी मैया की भी पूजा होती है। मान्यता है कि छठी मैया संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता
*छठ व्रत कथा-:*
कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं।
नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ। संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं।
देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया।
राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि-विधान से पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा।
छठ व्रत के संदर्भ में एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।
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स्वामी राजेश्वरानंद
संस्थापक श्री सुरेश्वर महादेव रायपुर छत्तीसगढ़