छत्तीसगढ़ का त्यौहार छेरछेरा – आलोक मिश्रा
छेरछेरा का त्यौहार हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया छत्तीसगढ़ में
पौष पुर्णिमा के पावन अवसर पर संपूर्ण छत्तीसगढ़ राज्य में छेरछेरा का त्यौहार हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जा रहा है। छेरछेरा के अवसर पर अन्न दान करने की परंपरा है, लोग एक- दूसरे के घर में जाते हैं और छेरछेरा मांग कर दान प्राप्त करते हैं।
यह खरीफ की फसल की पूर्णता का द्योतक है इसमें विशेषकर धान को दो आदि अन्य फसलो की लुगाई विशाल का कार्य संपन्न हो जाता है किसान अपने परिश्रम से कमाया हुआ खाद्यान्न अपने घरों में लाकर अपनी कोठी में एकत्र कर लेता है धर्म शास्त्रों की मान्यता है कि हमें अपनी कमाई का कुछ हिस्सा सामाजिक कार्यों में लगाना चाहिए।
इससे जहां एक और पुण्य की प्राप्ति होती है वहीं दूसरी ओर समाज के उन वंचित लोगों तक भी दांत का कुछ हिस्सा पहुंच जाता है जो खेती किसानी से दूर होते हैं या जिनके पास कृषि संबंधी आमदनी का कोई जरिया नहीं होता है यह कृषि कार्य की पूर्णता की निशानी इसलिए भी है कि इसमें जो भी छेरछेरा मांगने के लिए किसी के घर में जाते हैं।
वे प्रायः इन शब्दों का प्रयोग करता है छेरछेरा कोठी के धान ल हेर ते हेरा अर्थात किसान अपनी कमाई का धान या अन्य फसल कोठी से निकालकर दान करता है। श्री दूधाधारी मठ पीठाधीश्वर राजेश्री महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज ने भी लोगों को अन्न दान करके यह त्यौहार मनाया, अपने संदेश में उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में दान का विशेष महत्व है।
छत्तीसगढ़ वासी इस त्यौहार को बड़े ही भक्ति भाव से मनाते हैं, धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि- धर्म किए धन ना घटे! अर्थात धर्म करने से धन कम नहीं होता इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में दान पुण्य का कार्य करना ही चाहिए।
जिस किसी भी तरह से दान का कार्य किया जाता है वह हमेशा ही कल्याणकारी होता है दानं करोति कल्याणम धर्म शास्त्रों की ऐसी मान्यता रही है कि 12 महीनों में 12 पूर्णमासी होते हैं प्रत्येक पूर्णिमा का अपना अलग-अलग महत्व है